Guruvandana1

देव तथा गुरुवंदन करने हेतु श्री (खमासमण) पंचांग प्रणिपात सुत्र

इच्छामि खमासमणो !
वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए,
मत्थएण वंदामि।

खमासमण ( Khamasman ) – इस सूत्रसे देव व गुरु को वंदन किया जाता है। देव यानि जिनेश्वर भगवान ( तीर्थंकर), गुरु यानि ऐसे मुनिराज जिन्होने धन एवं स्त्री का त्याग किया हो। भगवान को तीन बार और गुरु महाराज को दो बार खमासमण दिये जाते है। दो हाथ, दो पांव और सिर – इन पाँचो अंगों को झुका कर वंदन किया जाता है। जिसे पंचांग प्रणिपात सुत्र कहते है। गुरु महाराज को वंदन करने की क्रिया उपर चित्र में दर्शायी गयी है।

तत्पश्चात गुरु महाराज से सुख – शांति की पृच्छा की जाती है। जिसका इच्छकार सूत्र बोल कर किया जाता है।

इच्छाकार सुह-राई ( सुह-देवसि)
सुख-तप-शरीर-निराबाध
सुखसंजम – जात्रा निर्वहो छो जी ?
स्वामी ! शाता छे जी ?
भात-पाणीनो लाभ देजोजी।

इच्छकार सूत्र से गुरु महाराज को सुख-साता पूछी जाती है। सुबह के समय सुहराई और दोपहर के समय सहदेवसि बोलना चाहिये। दोनों साथ में नही बोलना चाहिये।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन !
अब्भुट्ठिओ मि अब्भिंतर
राईअं (देवसिअं) खामेउं ?
इच्छं, खामेमि राईअं (देवसिअं)
जं किंचि अपत्तियं, परपत्तियं,
भत्ते, पाणे, विणए, वेयावच्चे,
समासणे, अंतर-भासाए,
उवरि-भासाए,
जं किंचि, मज्झ विणय-परिहीणं,
सुहुमं वा बायरं वा
तुब्भे जाणह, अहं न जाणामि,
तस्स मिच्छा मि दुक्कड़ं।

अब्भुट्ठिओ – यह सूत्र बोल कर, हमसे गुरु महाराज जी के साथ जो कोई अपराध हुए हों तो उसके लियॆ क्षमा-याचना की जाती है।

इस तरह से गुरुवंदन की विधि करते समय यह ध्यान देना चाहिये कि पहले दो खमासमण देने के बाद इच्छकार बोलना चाहिए। तत्पश्चात अब्भुट्ठिओ खामना। ( पदवीधर महाराज को खमासमण देकर अबभुट्ठिओ खामना)।

 

News related to Apparel & Textiles visit: indian-apparel.com/blog