आचार्य मानतुंग सुरिश्वरजी द्वारा रचित भक्तामर का आलौकिक वर्णन

आचार्य मानतुंग सुरिश्वरजी द्वारा रचित भक्तामर का आलौकिक वर्णन

आचार्य मानतुंग सुरिश्वरजी द्वारा रचित भक्तामर के एक-एक स्तोत्र का हर एक शब्द किसी मंत्र से कम नही है। जिस तरह एक चुम्बक लोहे को खिंचता है उसी तरह हर स्तोत्र का जाप करने से उन शब्दो के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि गुंजायमान होती है। जिसके कारण हमारे आस-पास के वातावरण को हमारे अनुकुल बन जाता है तथा हमारी अभिलाषाए परिपूर्ण होती है। अतः पाठ करते समय शब्दो में शुद्धता का होना जरुरी है।

भक्तामर के काव्यों का जाप की एक माला सूर्योदय के समय (जो कि सबसे उत्तम समय है) करना चाहिए। भक्तामर स्तोत्र महान प्रभावशाली है, सब प्रकार से आनंद मंगल करने वाला है। (पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके पाठ करना उपयुक्त है।)

वर्षभर निरंतर पढ़ना शुरू करना हो तो श्रावण, भादवा, कार्तिक, पौष, अगहन या माघ में करें। तिथि पूर्णा, नंदा और जया हो, रिक्ता न हो। शुक्ल पक्ष हो। उस दिन उपवास रखें या एकासन करें। ब्रह्मचर्य से रहें।

भक्तामर स्तोत्र का उच्चारण रोमन स्क्रीप्ट में भी किया गया है ताकि संस्कृत पढंने में असुविधा न हो।  भक्तामर का हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है ताकि हर गाथा का सांराश आसानी से आपके हृदय में उतर सके।

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कोरोना जैसी महामारी से अपनी सुरक्षा की ढाल बनाने हेतु उवसग्ग हरं का पाठ अवश्य करे।

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