Samayik Mupati Padilehu Jain Times

सामायिक आराधना करने हेतु सामायिक लेने तथा पारने की विधि

सामायिक आराधना लेने के लिये बाह्य शुद्धि करना जरुरी है। अतः सर्वप्रथम हाथ-पैर धोकर स्वच्छ होना और शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिये। फिर शुद्ध स्थान पर भूमिको प्रमार्जन कर उच्च आसन पर ठमणी तथा उसपर धार्मिक पुस्तक रखना चाहिये। धार्मिक पुस्तक में नवकार तथा पंचिंदियका पाठ होना चाहिये, यह जरूर ध्यान रखें।

लाल अक्षरों में लिखा गया है वह आपके समझने हेतु लिखा गया है। ब्लू में जो लिखा गया है वो क्रिया करनी है तथा काले रंग मे जो लिखा गया है वो आपको क्रिया करते समय बोलना है।

समायिक दो घड़ी यानि 48 मिनिटका समय धार्मिक क्रिया में व्यतित होना चाहिये। आप कोई भी धार्मिक पुस्तक पढ़ सकते है या नवकार का जाप कर सकते है या भक्तामर का स्तोत्र पढ़ सकते है। समायिक का समय जानने के लिये घड़ी जरूर रखनी चाहियें।

पूर्व या उतर दिशाकी ओर मुँह रहे तो उत्तम है। स्थापनाचार्य के सामने आसन बिछाकर बैठना चाहिये तथा साथ में मुँहपत्ती तथा चरवला लेकर बैठना चाहिये।

समायिक आराधना प्रारम्भ करें

स्थापना करते समय उसके सम्मुख उल्टा हाथ दिखाकर नवकार तथा पंचिंदिया बोलना चाहिये । इसका कारण है कि कोई वस्तु रखते समय ऐस हाथ रखा जाता है। क्योकिं स्थापना करते समय हमें आचार्यो के छतीस गुण रखने है ।

नमों अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहुणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हलइ मंगलं ।

(यह महामंत्र है। इस महामंत्र द्वारा हम पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करते है। इसका दूसरा नाम पंचमंगल सूत्र है, तथा नव पद होने से नवकार भी कहा जाता है।)

पंचिंदिय संवरणो, तह नवविह बंभेचर गुत्तधरो;
चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारस गुणेहिं संजुतो।  1

पंच महव्वय जुत्तो, पचविहायार पालण समत्थो;
पंच समिओ तिगुत्तो, छतीस गुणो गुरु मज्झ।  2

( इस सूत्र में आचार्य के छतीस गुणोंका वर्णन किया गया है और गुरू की स्थापना करते समय यह सूत्र बोला जाता है )

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणि-ज्जाए नसीहि-आए मतथएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरिया-वाहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्क-मिउं । 1 । इरियावहि आए, विराहणाए । 2 । गमणागमणे । 3 । पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टी मक्कडा-संताणा-संकमणे । 4 । जे मे जीवा विराहिआ । 5 । एंगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया । 6 । अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । 7 ।

( जीवनशुद्धि करने के लिए प्रथम में पापो का क्षय करना आवश्यक है, अतः इस सूत्र बोलते हुए हिंसाजनित पापों के लिए क्षमा याचना की जाती है। इस सूत्र में किन-किन जीवों की विराधना हुई है उसका विवरण है।)

तस्स उत्तरी-करणेणं, पायच्छित-करणेणं, विसोही-करणेणं, विसल्ली-करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायण-ट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

( इरियावहियं करने पर भी जो पाप बाकी रह जाते है उनकी शुद्धता के लिए तथा तीन शल्य की शुद्धि के लिए यह सूत्र बोलते है।)

अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए ।1। सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल-सचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठि-संचालेहिं ।2। एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ।3। जाव अरिहंताणं भगवानताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ।4। ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ।5।

( इस सूत्र में काउस्सग्ग के बारह तथा अन्य चार आगार मिलाकार कुल सोलह आगारों का वर्णन है। कायोत्सर्ग करते हुए अनिवार्य शारीरिक अपवाद भी रखे गये हैं। इनके उपरान्त ज्यादा अपवाद ( छूट) लिए जाय तो कायोत्सर्गका भंग गिना जाता है।

( अब एक लोगस्सका चंदेसु निम्मलयरा तकका अथवा चार नवकार का काउस्सग्ग करे और नीचे मुताबिक प्रगट लोगस्स पढ़े।)

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे;
अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली ।1।

उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च;
पउमप्पहं सुपासं, जिण च चंदप्पहं बंदे ।2।

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च;
विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ।3।

कुंथुं अरं च मल्लिं, बंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च;
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ।4।

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रयमला पहीण-जरमरणा;
चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ।5।

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा;
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु। ।6।

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा;
सागरवर-गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।7।

( इस सूत्र में चौबीस तीर्थंकरो की नामपूर्वक स्तुति की गयी है। अतः इसका दूसरा नाम नामस्तव है तथा पंचपरमेष्ठी या 24 तीर्थंकरों का स्मरण करने के लिए कायोत्सर्ग में लोगस्स या नवकार गिना जाता है।)

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं

मुहपत्तीके 50 बोल ( यहाँ मुहपत्ती का पडिलेहण करते हुए साधु या श्रावक निम्नानुसार 50 बोल मनमें बोले। साध्वी तथा श्राविका तीन लेश्या, तीन शल्प और चार कषाय इन दसको छोड़कर 40 बोल मन में बोलें।)

1-सुत्र, अर्थ, तत्व करी सद्दहुं  2- सम्यक्त्व मोहनीय 3- मिश्र मोहलीय 4- मिथ्यात्व मोहनीय परिहरुं 5- कामराग 6-स्नेहराग 7-दृष्टीराग परिहरुं 8- सुदेव 9- सुगुरू 10- सुधर्म आदरुं 11- कुदेव 12- कुगुरु 13- कुधर्म परिहरुं 14- ज्ञान 15- दर्शन 16- चारित्र आदरुं 17- ज्ञानविराधना 18- दर्शनविराधना 19- चारित्र-विराधना परिहरुं 20- मनगुप्ति 21- वचनगुप्ति 22- कायगुप्ति आदरुं 23- मनदंड 24- वचनदंड 25- कायदंड परिहरुं।

(बाकीके 25 बोल अंग पडिलेहन करते हुए मन में बोले)

(बायाँ हाथ पडिलेहते हुए) 1- हास्य 2- रति 3- अरति परिहरुं
(दाहिना हाथ पडिलेहते हुए) 4-भय 5- शोक 6- दुंगछा परिहरुं।
(शिर पडिलेहते हुए) 7- कृष्णलेश्या 8- नीललेश्या 9- कापोतलेश्या परिहरुं।
(मुख पडिलेहते हुए) 10- रसगारव 11- ऋद्धिगारव 12 – सातागारव परिहरुं।
(छाती के आगे पडिलेहते हुए) 13- मायाशल्य 14- नियाणशल्य 15- मिथ्यात्वशल्य परिहरुं।
(दाहिना कंधा पडिलेहते हुए) 16- क्रोध 17- मान परिहरुं
(बायाँ कंधा पडिलेहते हुए) 18- माया 19- लोभ परिहरुं
(दाहिना घुटना पडिलेहते हुए) 20- पृथ्वीकाय 21- अप्काय 22- तेउकायनी रक्षा करुं।
(बायाँ घुटना पडिलेहते हुए) 23- वायुकाय 24- वनस्पतिकाय 25- त्रसकायनी जयणा करुं।

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक संदिसाहुं ? इच्छं

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक ठाउं ? इच्छं

( फिर दो हाथ जोड़कर नवकार गिने )

नमों अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहुणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हलइ मंगलं ।

इच्छाकारी भगवन् ! पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावोजी।

गुरु या व्रतधारी पुरुष हो तो उनसे बोलावे अन्यथा स्वयं करेमि भंते बोले

करेमि भंते ! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेम, न कारवेमि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।

( इस सूत्र का दूसरा नाम सामायिक लेने का पच्चक्खाण है। यह सूत्र द्वादशांगी का सारभूत है, क्योंकि चारों अनुयोग आदि इसी सूत्र के विस्तार रूप है।  इस सूत्र में विभिन्न रीति से छहों आवश्यक समाहित है और जैन धर्म के करणीय आचार को प्रतिपादन करने वाला मूलभूत सूत्र है।  )

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे संदिसाहुं ? इच्छं।

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे ठाउं ? इच्छं।

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

(स्वाध्याय के लिये गुरु के पास आज्ञा मांगे)

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं ? इच्छं।

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करुं ? इच्छं।

( फिर दो हाथ जोड़कर मनमे तीन बार नवकार गिने )

नमों अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहुणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हलइ मंगलं ।

अब 48 मिन्ट तक आपको स्वाध्याय करना है तत्पश्चात समायिक पारने की विधि की क्रिया करते है।

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरिया-वाहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्क-मिउं । 1 । इरियावहि आए, विराहणाए । 2 । गमणागमणे । 3 । पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टी मक्कडा-संताणा-संकमणे । 4 । जे मे जीवा विराहिआ । 5 । एंगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया । 6 । अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । 7 ।

तस्स उत्तरी-करणेणं, पायच्छित-करणेणं, विसोही-करणेणं, विसल्ली-करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायण-ट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए ।1। सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल-सचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठि-संचालेहिं ।2। एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ।3। जाव अरिहंताणं भगवानताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ।4। ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ।5।

( अब एक लोगस्सका चंदेसु निम्मलयरा तकका अथवा चार नवकार का काउस्सग्ग करे और नीचे मुताबिक प्रगट लोगस्स पढ़े।)

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे;
अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली ।1।

उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च;
पउमप्पहं सुपासं, जिण च चंदप्पहं बंदे ।2।

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च;
विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ।3।

कुंथुं अरं च मल्लिं, बंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च;
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ।4।

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रयमला पहीण-जरमरणा;
चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ।5।

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा;
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु। ।6।

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा;
सागरवर-गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।7।

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं

( फिर 50 बोल से मुहपति पडिलेहनी, फिर खमासमण देना। यह पहले की भांती ही करना है।)

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पारुं ? यथाशक्ति।

इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पार्युं ? तहत्ति।

( फिर दाहिना हाथ चरवला अथवा कटासणे (आसन) पर रखकर नीचे मुताबिक नवकार तथा सामायिक पारने का सूत्र बोले।)

नमों अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहुणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हलइ मंगलं ।

सामायिक पारने का सूत्र

सामाइय वयजुत्तो, जाव मणे होइ नियम संजुत्तो; छिन्नइ असुहं कम्मं, सामाइय जत्तिया वारा  ।1।

सामाइयंमि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा; एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा  ।2।

सामायिक विधिए लीधुं, विधिए पार्यु, विधि करतां जे कोई अविधि हुओ होय, ते सवि हु मन, वचन, कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं।

दस मनना, दश वचनना, बार कायाना, ए बत्रीस दोषमांही जे कोई दोष लाग्यो होय ते सबि हु मन, वचन, कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं।

सूचना – प्रतिक्रमण करने से पहले पुस्तकादिकी स्थापना की हो तो सामायिक पारने के बाद दाहिना हाथ उत्थापन मुद्रा से स्थापना की ओर सीधा रखकर नवकार गिनना चाहिये और फिर पुस्तकादिको उचित स्थान पर रखना चाहिये।

नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं।

॥ सामायिक पारनेकी विधि संपूर्ण ॥