आज महावीर स्वामी केवल ज्ञान कल्याणक पर्व दिवस के रूप में मनाते है। आप सभी को महावीर स्वामी के केवल ज्ञान कल्याणक की आध्यात्मिक शुभकामनाएं। इस विषय पर एक संक्षिप्त विवरण।
महावीर भगवान ने छद्मस्थ अवस्था के करिब साढ़े 12 वर्ष कठिन साधना मे व्यतीत किये। एक दिन वे जुम्भिक ग्राम के समीप, ऋजुकूला नदी के तट पर, मनोहर नामक वन के मध्य में रत्नमयी एक बड़ी शिला पर साल वृक्ष के नीचे बेले का नियम लेकर प्रतिमा योग में विराजमान हुए।
वैशाख शुक्ल दशमी के दिन, अपराह्न काल में, हस्त और उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र के बीच चंद्रमा के आ जाने पर, परिणामों की विशुद्धता को बढ़ाते हुए वे क्षपकश्रेणी पर आरूढ हुए। उसी समय उन्होनेँ शुक्ल ध्यान के द्वारा चारों-घातीय कर्मों को नष्ट कर अनंतचतुष्टय प्राप्त किया। तथा 34 अतिशयों से सुशोभित हुए।
अब वे संयोग केवली, 13वें गुणस्थान, परमौदारिक शरीर के धारक हो गए। निज-पर का प्रयोजन सिद्ध करने लगे। उसी समय सौधर्मेन्द्र, स्वर्ग के इंद्र, चारो प्रकार के देवों के साथ उपस्थित हुए। उन्होंने ज्ञानकल्याणक संबंधी परमौदारिक शरीर की पूजा करी, तभी समवशरण की रचना हुई और भगवान महावीर अतिशयों से संपन्न अर्हन्त परमेष्ठी हो गए।
जैन इतिहास का एक अविस्मरणीय और अति – महत्वपूर्ण दिवस वैशाख शुक्ला एकादशी है। वैशाख शुक्ला दशमी को वर्तमान शासन नायक तीर्थंकर भगवान् महावीर का केवलज्ञान कल्याणक होता है। दूसरे दिन यानि वैशाख शुक्ला एकादशी को मध्यमपावा में श्रमण भगवान् महावीर के विराट् समवसरण की रचना हुई।
इसी समवसरण में इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह महापण्डितों व उनके शिष्यों सहित चार हजार चार सौ (4400) धर्मानुरागियों ने दीक्षा को अंगीकार किया। इससे श्रमण – तीर्थ की स्थापना हुई। चन्दबाला आदि हजारों मुमुक्षुओं ने अणगार धर्म अपनाया और श्रमणी – तीर्थ की स्थापना हुई। हजारों – लाखों गृहस्थ नर – नारियों ने अणगार धर्म अपनाया, इससे श्रावक – तीर्थ और श्राविका तीर्थ की स्थापना हुई।
वैशाख शुक्ला दषमी को भगवान् महावीर का केवल ज्ञान कल्याणक और वैशाख शुक्ला एकादशी को तीर्थ – स्थापना दिवस, गौतम स्वामी आदि गणधर व महासती चन्दनबाला दीक्षा दिवस के रुप में दो दिवसीय कार्यक्रम हर्षो-उल्लास के साथ आयोजित किए जाते हैं।
ऋजुबलिका मंदिर में भगवान महावीर की केवली मुद्रा में प्रथम प्रतिमा