नवकार महा-मंत्र का जाप विश्वभर में जैनियों द्वारा पूरी आस्था एवं विश्वास के साथ किया जाता है। इस मंत्र के माध्यम से कोई व्यक्तित्व का नहीं बल्कि शुद्ध आत्मा का आह्वान किया जाता है। इसकी पाँच पंक्तियाँ हैं, जिसका अर्थ इस प्रकार है।
प्रथम – णमों अरिहंताणं – मैं अरिहंतों को नमन करता हूं। (श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं कर्म के विजेताओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूं। )
द्वितीय – णमों सिद्धाणं – मैं सिद्धों को नमन करता हूं। (श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं सिद्ध एवं मुक्त आत्माओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूं। )
तृतीय – णमों आयरियाणं – मैं आचार्यों को नमन करता हूं। (श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं धर्म उपदेशना करने वाले आचार्यों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूं। )
चतुर्थ – णमों उवज्झायाणं – मैं उपाध्यायों को नमन करता हूं। (श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, मैं धर्म उपदेशना करने वाले उपाध्यायों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूं। )
पंचम – णमों लोए सव्व साहूणं – मैं दुनिया के सभी साधु-संतो, भिक्षुओं के आगे नतमस्तक हूं। (श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं सभी साधु-संतो, भिक्षुओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूं। )
इस तरह हम अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं सर्व साधु – इन पांच परमेष्ठिओं को नमस्कार करते हैं। निष्ठापूर्वक जाप किये जाने पर सर्व पाप तथा दुःखो का विनाष होता हैं।
अरिहंत एवं सिद्ध ये दो देव कहलाते है तथा आचार्य, उपाध्याय एवं साधु ये तीन गुरु कहलाते हैं।
नवकार के 9 पद, 8 संपदा और 68 अक्षर है, जिनमें 7 संयुक्ताक्षर है तथा 61 असंयुक्ताक्षर है। पहले, तीसरे व चौथे पदों में 7-7 अक्षर हैं। दूसरे में 5, पांचवें व नौंवे में 9-9 अक्षर हैं। जबकि छठे, सातवें और आठवें पदों में 8-8 अक्षर है। यह महा-मंत्र सर्व-सिद्ध, लाभकारी और अनंत रूप से परिपूर्ण मंत्र है।
चित्रण: चित्रण में दिखाया गया है कि यह मंत्र तीनों लोकों में सर्वोच्च है। नादिर (जल का प्रतीक), पृथ्वी (भूमि का प्रतीक) और जेनिथ (आकाश का प्रतीक) है। यह सूर्य, चंद्रमा, देवताओं, देवी-देवताओं, राक्षसों, मनुष्यों और ब्रह्मांड के अन्य सभी प्राणियों द्वारा पूजनीय है।
नमोकार मंत्र में निहित ध्वनियों में अनिर्वचनीय शक्ति है। यहां हर एक अक्षर अपने आप में एक मंत्र है। जब कोई शुद्ध और स्थिर मन से इस पर ध्यान करता है तो वह पीड़ा, भय और बुराई से सुरक्षित हो जाता है तथा यह एक ढाल की तरह रक्षा करता है।
यह ग्रहों की ज्योतिषीय दुष्परिणामों को प्रभावित करता है। बुरी आत्माओं और क्रूर प्राणियों के कारण होने वाली पीड़ाओं से बचाता है। यह कल्याण, सुख और धन को बढ़ाता है। निरन्तर इसका जाप एवं ध्यान करने से स्वर्ग और मुक्ति को प्राप्त करता है।
पहला अक्षर – णमो और नमो दोनों ही उच्चारण सही हैं।
कोरोना वायरस की महामारी से सुरक्षा हेतु उवसग्गहरं का जाप
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