उवसग्गहरं – यह श्री पार्श्वनाथ भगवान का स्तोत्रस्तवन है। इसकी अराधना करने से सर्व विघ्न दूर होते है। इस स्तोत्र में भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति करके समकितकी याचना की गई है। इसकी रचना आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी जी महाराज के द्वारा की गयी है।
उवसग्ग हरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण-मुक्कं;
विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण-आवासं ।१।
विसहर-फुलिंग-मंतं, कंठे धारेई जो सया मणुओ;
तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई;
नर-तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ।३।
तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि-कप्पपायवब्भहिए;
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ।४।
इअ संथुओ महायस, भक्तिब्भर-निब्भरेण हियाएण;
ता देव दिञ्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद! ।५।
वर्तमान काल में कोरोना वायरस से अपनी सुरक्षा द्वारा मुनीश्री द्वारा यह विडियो तैयार किया गया है। जिसमे उन्होनें नवकार मंत्र का स्मरण करते हुए उवसग्गहरं को पांच बार माथे पर हाथ रखकर अराधना करने तथा प्रभु से सुरक्षा हेतु भावना को दर्शाया है।
धार्मिक क्रिया – लधु शांति, बड़ी शांति
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